घर के आंगन से कुछ आवाजें आ रही थीं चट-चट्ट…, पट्ट-पट्ट.., मैंने खिड़की से झांक कर देखा। मेरी डेढ़ साल की बेटी किसी चीज पर बार-बार चप्पल मार रही थी। मैंनें पूछा क्या कर रही हो लाड़ो। अभी-अभी चलना और तुतलाकर बोलना सीखी थी लाड़ो। अपनी तोतली आवाज में वह बोली यहां तिलतत्ता है-तिलतत्ता। मैंने जाकर देखा एक कॉकरोच (तिलचट्टा) था। जिसपर लाड़ो चप्पलों से बार कर रही थी। मुझे देख कर वह बोली डैडू ये तिलतत्ता (तिलचट्टा) बड़ा ढ़ीठ है। चप्पल खाता है, फिर भाग जाता है और थोड़ी देर बाद फिर बापस आ जाता है। बेटी की प्यारी और समझदारी भरी बातें सुनकर मैं सोचने लगा कि बेटी कह तो सही रही है, कि कॉकरोच (तिलचट्टा) होता तो बड़ा ढ़ीठ है। चप्पल खाने के बाद, फिर उसी जगह बार-बार आता है। बेवकूफ तिलचट्टा मरना तो पसंद करता है लेकिन अपने घर में रहना पसंद नहीं करता। खैर, ये तो अपनी-अपनी फितरत होती है। जैसे कुछ इंसान तिलचट्टे की फितरत् के होते हैं। कल का वाक्या हीे देख लें, हम अपनी छत पर टहल खड़े थे तभी देखते हैं? सुनसान सड़क पर दो भालू नुमा इंसान (यहां मैंने भालु नुमा इंसान इसलिये कहा क्यों कि बड़ी-बड़ी दाढी-मूँछ और झवरा बाल लिये) सिगरेट के छल्ले उड़ाते दोनों मस्तीखोरी कर रहे थे। तभी सायरन बजाती हुई गाड़ी आई और उसमें से दो सरकारी लट्ठदूत उतरे। लट्ठदूतों ने दोनों आवाराओं की तसरीफ (पिछवाड़ी) लाल कर दी और चिल्लाकर बोले करफ्यू लगा है। अब बाहर मत निकलना। लंगड़ाते हुये दोनों अपने-अपने घरों में चले गये। कुछ देर बाद बाहर से चिल्लाने की आवाजें सुनकर मैंने खिड़की के होल अपनी ऑख टिका दी। देखा तो दोनों फिर लट्ठदूतों से पिछवाड़े पर टेटू जैसी छाप बनवा रहे थे। मतलब फिर भाई लोग आवारागिरी करने निकल आये थे। इस घटना के बाद कॉलोनी में चर्चा का बाजार गर्म हो गया। कुछ अक्लमंदों के मतानुसार ये बड़ा अच्छा कर्म या कहे क्रिया-कर्म हुआ था, लेकिन कुछ मंद अक्लों के हिसाब से ये स्वतंत्रता का हनन था! खैर, रात भर सब आराम से गुजरा। सुबह-सुबह फिर मुहल्ले में बड़ा शोर-गुल हो रहा था, मैंने फिर से झरोखे से झांक कर देखा तो, अबकी दफा 4-6 आरआर मतलब (रोड़ रोमियो) ओंधे मुँह पड़े कराह रहे थे, और लट्ठदूत अपने टूटे लट्ठों के टुकड़ों के एकत्रीकरण में लगे थे! तभी मेरी लाड़ो चिल्लाते हुये आई कि डेडू अपने थेरू (शेरु कुत्ता) की टेल (पूंछ) को कुछ हो गया है। मैंने देखा बेटी ने कुत्ते की पूंछ में सस्सी बांध रखी थी। मैंने पूछा, यह क्या है लाडो? वह फिर तुतलाकर बोली डेडू ये देखो थेरू (शेरु) की टेल (पूंछ) सीधी नहीं हो रही है! उसकी बात सुनकर अब मैं कभी खिड़की से बाहर औधे मुंह पढ़े उन रोड़ रोमियों को देखता, तो कभी अपने कुत्ते की की पूंछ को देखता! मन में बार-बार यही सवाल आ रहे थे कि आखिर क्यों कुछ लोग तिलचट्टे की फितरत् के होते हैं? चप्पल-जूते खाने के बाद भी नहीं सुधरते? नियमों का उलंघन करने में इन्हें मजा क्यों आता है? कुकुर की टेल टेढ़ी की टेढ़ी मतलब कुत्ते की दुम वारह वर्ष पुंगरिया में डाली निकली जब टेड़ी की टेड़ी?
अमितकृष्ण श्रीवास्तव