प्रो ओजस ने कलाओ मे अभ्यास और साधना के महत्व को बताया

संगीत विभाग, डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में आयोजित संगीत चिकित्सा पर आधारित राष्ट्रीय कार्यशाला का चतुर्थ दिवस रहा| कार्यशाला का प्रारंभ सरस्वती वंदना से हुआ, विभागीय छात्राओं के द्वारा सस्वर वंदना प्रस्तुत की गई| तबला पर संगत आकाश जैन एवं हार्मोनियम पर संगत अतुल पथरोल ने की | प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता एवं विषय विशेषज्ञ के रूप में प्रो ओजस प्रताप सिंह जी रहे। प्रो ओजस ने कलाओ मे अभ्यास और साधना के महत्व को बताया। उन्होंने बताया कि संगीत साधक मे धेर्य एवं एकाग्रता होनी चाहिए। अभ्यास सत्र मे स्वर लगाव की विशेष प्रक्रिया, अभ्यास की विभिन्न विधियाँ साथ ही राग भैरव मैं विशेष बंदिशों का ज्ञान प्रतिभागियों को दिया। अंत में राग भैरवी से प्रो ओजस ने सत्र का समापन किया तबले पर संगत श्री शैलेन्द्र सिंह राजपूत जी ने की। दितीय सत्र में मुख्य वक्ता एवं विषय विशेषज्ञ के रूप में मनोविज्ञान विभाग के डा ज्ञनेश तिवारी एवं श्री द्रुगेश उपाध्याय जी रहे। दोनों ही वक्ताओ ने संगीत चिकित्सा सहित संगीत और मनोविज्ञान के संबंध को स्पष्ट किया । सत्र के समन्वयक के रूप डॉ. अवधेश प्रताप सिंह तोमर ने अपने शोध के आधार पर संगीत चिकित्सा के मूल क्रियाविधि एवं उनके प्रमुख मॉडल्स को प्राचीन वेदिक पद्धतियों पर ही आधारित होने के प्रमाण प्रस्तुत किये।

संध्या कालीन सत्र में प्रथम प्रस्तुति आदर्श संगीत महाविद्यालय के नवोदित कलाकारों की रही उन्होंने राग भुपाली में द्रुत ख्याल की प्रस्तुति दी। शुभांषिता ठाकुर ने भजन प्रस्तुत किया तत्पश्चात गोलू विश्वकर्मा एवं कृष्णकुमार सेन द्वारा राग केदार की प्रस्तुति दी गई। अंतिम प्रस्तुति रिद्धि जैन की रही तबले पर संगत आशुतोष श्रीवास्तव ने की और हारमोनियम पर कौशल मेहरा ने की।
कार्यशाला में डॉ. ललित मोहन का मार्गदर्शन रहा आभार व्यक्त डॉ. राहुल स्वर्णकार ने किया।

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