सागर। समाज जनसंख्या में महिलाओं की गिनती कम होने से अब परेशान होने लगा है। उसी समाज में महिलाओं का दर्जा और उनकी हैसियत आज भी कई मायनों में कमतर आंकी जाती है। कई घराने ऐसे हैं जो अपने परिवार की अगली पीढ़ी के सृजन के खातिर दूसरे प्रदेशों से महिलाओं को लाकर विवाह कराने से नहीं चूकते है। वहीं भारत देश का एक प्रदेश जो सूर्य मंदिर और द्वारका नगरी के लिये जाना जाता है। किन्तु आज कल जैसे ही ओडीसा का नाम आता है तो लोगों के जहन में बरबस ही ऐसे कुवारों जो अधेड़पन की दहलीज लांघने आतुराइत हैं का अक्स उभरकर सामने आ जाता है, जो हाथ पीले कर बस.. घर बसाने का सपना संजो रहे होते है। जिनकी उम्मीद ओडीसा है या यूं कहा जाये कि अब विवाह होने की गारंटी या विवाह का सिम्बल भी यही हैं। दूसरी ओर उन मजलूम गरीबों की बेटियों की बेबसी जो अपने परिवार को चंद रूपयों के खातिर खुद को अंजान और अनवोले जिसकी भाषा तक उनकी समझ से परे है ऐसी जगहों (गांव, शहर, प्रदेश) पर जाकर अपने दायित्व या यूं कहें कि अपनी गरीब होने की बेबसी का सबसे बडा इम्तहान दे रही है। किस गली, किस संस्कार और किस समाज में पनाह पायेंगी? इससे भी अंजान! आज समाज में पुरूषों के जनसंख्या घनत्व के आंकड़ों में महिलाओं की संख्या निरंतर कम से कमतर होती जा रही है। प्रदेश में ओडीसा का नाम बेटियों को पैसे देकर विवाहने या दूसरी भाषा में जो समाज स्वीकार नहीं करता, किन्तु अंजाने में करता वहीं है! कहें तो खरीद-फरोख्त शब्द ही शायद लाजमी होगा। विवाह योग्यता की परिधि लांघने वाले अधिकांश कुंवारों को यहीं उम्मीद का एक आशरा है। अन्यथा बिन व्याहे ही शायद कई के जीवन यूं ही कट जाये? बावजूद इसके किसी परिवार में वे बेटियां जो शायद इसी जिसे लोग अंजाने में करते है और लाजमी शब्द खरीद-फरोख्त ही जान पड़ता है, आने के बाद भी कई वर्षों तक न तो परिवार का हिस्सा बन पाती हैं और न ही अपने पीहर के परिजनों से ही मेल मुलाकात कर पाती है। मानों कैदी के जैसे जीवन गुजर कर रही हों।
ओडीसा का जानकर थाने तक पहुंच गया परिवार
सागर शहर में एक वाक्या सामने आया जब एक परिवार के कुछ लोगों को किसी की सूचना पर पुलिस ने थाने में बैठा लिया। इस परिवार में एक माँ, एक बेटी जो शादी शुदा थी और एक कुंवारी बेटी जो शायद 14-15 वर्ष की रही हो, साथ में एक भाई। किसी परिचित से मिलने सागर पहुंचे उनका काम इतना था कि उन्हीं के बताये अनुसार एक और बेटी की शादी की किसी से बात चलाना। शायद बात बनी नहीं? किन्तु पुलिस के घेरे में पड़ गये। हांलाकि इसकी सच्चाई क्या थी उनकी बातों से वायां नहीं हो पाई। बाहरहाल पुलिस ने कुछ लिखा पढ़ी करने के बाद संभवत: जाने ही दिया। लेकिन सूचना देने वाले ने महज एक शब्द में इतना बखेड़ा कर दिया वह था ”ओडीसा का परिवार” (लड़की)! किन्तु वहां का रहने वाला यह परिवार नहीं था। अब सवाल उठता है कि क्या गरीब होना गुनाह है या किसी का महिला होना कसूर का कारण?
सच्चाई क्या है यह तो समझ नहीं आई? पर उस भाई और उस छोटी बेटी की बातें सुनकर लज्जा अवश्य आई। बेटा कह रहा था क्या एक भाई अपनी बहन का सौदा कर सकता है तो वह छोटी बेटी कह रही थी कि दो रोज से पेट की भूख भी नहीं मिट पाई।