विश्व में भारतीय पद्धति की स्वीकार्यता का अर्थ योग

gagansinghसागर। गगन सिंह ठाकुर विभागाध्यक्ष योग विज्ञान विभाग स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय ने बताया कि 11 दिसम्बर 2014 को यूनाइटेड नैशंस की आम सभा ने भारत द्वारा पेष किए गए प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित कर दिया। सबसे मजेदार बात ये कि इस प्रस्ताव का समर्थन 193 में से 175 देशों न किया और बिना किसी वोटिंग के इसे स्वीकार कर लिया गया।
यूएन ने योग की महत्ता को स्वीकारते हुए माना कि ”योग मानव स्वास्थ्य व कल्याण की दिशा में एक संपूर्ण नजरिया है। इसका मतलब यह है कि विश्व ने भारत और योग को स्वीकार किया।
आधुनिक युग में योग का महत्व बढ़ गया है। इसके बढ ऩे का कारण व्यस्तता और मन की व्यग्रता है। आज के समय के मनुष्य को योग की ज्यादा आवश्यकता है, क्योकि आज मनुष्य का मन और शरीर अत्यधिक तनाव, वायु प्रदूषण तथा भागमभाग के जीवन से रोगग्रस्त हो चला है। आज के मनुष्य का चित्त अपने केन्द्र से भटक गया है। उसके अंतर्मुखी और बहिर्मुखी होने में संतुलन नहीं रहा। अधिकतर अतिबहिर्मुख जीवन जीने में ही आनंद लेते है जिसका परिणाम संबंधों में तनाव और अव्यवस्थित जीवनचर्या के रूप में सामने आता है। अगर हम ये कहे कि योग भविष्य का धर्म और विज्ञान है तो कोई अतिसंयुक्ति नहीं होगी। भविष्य में योग का महत्व बढ़ेगा। यौगिक क्रियाओं से वह सब क ुछ बदला जा सकता है जो हमें प्रकृति ने दिया है और वह सब कुछ पाया जा सकता है जो हमें प्रकृति ने नहीं दिया है। योग इस एक शब्द में पिण्ड व ब्रह्मड के सम्पूर्ण सत्यों का समावेश है। बस आवश्यकता है योग के समग्र सत्य को समझने और उसके अनुसार जीने की। किसी भी सत्य को यदि हम समग्र रूप सेे नहीं समझते तो हम उस सत्य से आंशिक या पूर्ण रूप से वंचित रह जाते है। योग के वैयक्तिक एवं वैश्विक सत्यों की ओर आज विश्व के प्रामाणिक व जिम्मेदार शिखर पुरूषों की गम्भीरता पूर्वक विचार करना ही चाहिए। जब हम योग के वैयक्तिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक लाभों व सत्यों का पूरी ईमानदारी के साथ मूल्याक ंन करेंगे तो हम स्वयं व समष्टि के योगी होने में गौरव, सौभाग्य व लाभ अनुभव करेंगे। योग मानवीय चेतना का मूल स्वभाव तथा अन्तिम लक्ष्य-ध्येय-गन्तव्य और जीवन की पूर्णता है। मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है और मनुष्य के अन्तर जो बीज रूप में जो सम्पूर्ण ज्ञान, संवेदना, सामथ्र्य, पुरूषार्थ, सुख, शान्ति व आनन्द सन्निहित है, उसका पूर्ण प्रकरीकरण व जागरण केवल योगविद्या एवं योगाभ्यास से ही संभव है। आज विश्व समुदाय के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौतियां है- हिंसा, अपराध, आत ंकवाद, युद्ध, नशा, भ्रष्ट आचरण व भ्रष्टाचार, विचारधाराओं का चरम संघर्ष, अन्याय, अमानवीय असमानता,स्वार्थपरता, अहंकार एवं अकर्मण्यता और इन सबका एकमात्र समाधान है, योग विद्या। पूरे जीवन को एक शब्द में कहें या परिभाषित करें तो वह है – अभ्यास। जैसे हमारे सोचने, विचारने, खाने-पीने, कमाने बोलने व जीने के अभ्यास होते है, वैसा ही हमारा जीवन हो जाता है। एक योग के प्रतिदिन के अभ्यास से हमारे जीवन के सभी अभ्यास श्रेष्ठ, परिष्कृत व दिव्य हो जाते है। अत: नियमित योगाभ्यास ही एक स्वस्थ, समृद्ध, सफल व सुखी आदर्श जीवन का आधार है। अत: आज इसलिए पूरे विश्व को योग की आवश्यकता है और यही कारण है कि विश्व ने योग को स्वीकार किया।

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