चड्डी-बनियान में गॉगल पहन स्मार्ट बनाने की कला ?

Amit Krishana Shrivastava

बात एक कस्बे की है, जहाँ के लोग अपने ही घर में फजीहत कराने के आदि हों चुके हों ! जहां बड़-बड़े शहरों के लोग मंचों से हमें गंवार कह कर, हम से ही तालियां पिटवा जाते हों। अपने गांव का मोड़ा अब रंगीन गॉगल लगाने छटपटाने लगा। यनी हीरो गिरी दिखाने सजने-संवरने लगा है । बेचारे ने स्मार्टनेस के चक्कर में कहीं कनपटी कटाई, कहीं मशीनों से मुंड़ी घुटवाई, नयन रूपी सरोवरों का पानी तक सुखबा डाला, गाद लगवाकर बालों की खाल पटवाई। बीच-बीच में धोती पकड़ भैया को आवाज लगाई, मगर कुबेर के सामने उनके टकला में जूं तक नहीं सुरबुराई ! मोड़ा का नामकरण तो पैदा होते ही हो चुका था, लेकिन अब यही नाम उसकी चिड़ बन रही थी। अब लोग कहते कि विकसा कहां है। खैर, मोड़ा अब स्मार्ट बनवे के चक्कर में पहुंच गया ट्रेलर मास्टर के पास। बाप ने धन की पोटली दे रखी थी, लेकन स्मार्ट ट्रेलर मास्टर मांइड प्लेयर था सो उसने मोड़ा से पहले पुरानी पैंट-शर्ट उतरवाई और चमकनी-चिलचिली से उसी की रंगत बनाई। कहीं खीसा लगाया, कहीं टाट की पैबंद लगाई। मोड़ा खुश हुआ, हुनरबाजों ने पट्टी पढ़ाई कि देखो धन की पोटली से भविष्य में नई ड्रेस खरीदी जायेगी । सांतवना देकर कहा बेटा, अभी चड्डी-बनियान में घूमों ! स्मार्टनेस की ड्रेस बाद में पहनाई जायगी । मोड़ा कुछ मचला, कीचड़ और गारे में लपड़ा ।  स्मार्ट टेलर ने एक डिबिया निकाली, थूंक मिली फूंक मारी और गॉगल की दोनों डंडी चड्ड़ी-बनियान बाले मोड़ा के कानों में चढ़ा दी। मास्टर ने कान में फुसफुसाहट लगाई। बेटा, अब हीरो की भांती चलना, खुद को स्मार्ट समझना ! रंगीन गॉगल ने कीचड़, गारे  को देखने की नजर बदल के रख दी । हाय-रे रातों-रात नजर और नजरिये की वॉट… लगा ड़ाली। विकसा मोड़ा अब खुद पर सवाल नहीं कर रहा, फटी चड्डी-बनियान पर रंगीन गॉगल पहन खुद को स्मार्ट समझ रहा ? लोग भी अब फटे हाल, नंगे बदन को भूलकर चश्मे, माफ करना (गॉगल) को देखने की बात करने में लगे। आज हमें तीन बंदरों की याद हो आई, पर माफ करना थोडा कनफ्यूजन है कि वो बंदर थे या गधे ! सुनने को यहां कुछ था ही नहीं, सो सुना नहीं, अज्ञान्ता का प्रमाण पत्र बांटा जा रहा है। बोलने और देखने का अब सवाल ही कहाँ है ? बस सवाल है, कि सवाल कैसे करें ? क्या फटी चड्डी-बनियान यानी खस्ता हालत को सुगम नहीं बनाया जा सकता था ? क्या गारे, गंदगी का नाम अब पुष्प, झरना, फब्वारा रख लें ? गिरते-उठते लोगों की चोटों पर नमक-मिर्च का मीठा-मीठा लेप कैसे कर लें ? किसी की मौत पर हंस कर मातम कैसे मनायें ?  अये बंजारे अब शायद आसमा से तूं ही अपनी आंखें डब-ड़बायेगा ! जब सुनेगा खजाने लुट गये, तेरे हिस्से आई कौड़ियों में नाम सज गये !

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